
‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ जीवमात्र की परम कल्याणकारी सेवा में रत
समस्त जगत के शीर्षस्थ आध्यात्मिक गुरु, जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने जीवकल्यार्थ जो अमूल्य उपहार समर्पित किया है, उस अनमोल निधि के समस्त जगत में वितरण हेतु आध्यात्मिक व सामाजिक जनकल्याणकारी संस्था ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ संकल्पबद्ध है । यह श्री महाराज जी द्वारा मार्गदर्शित उस रागानुगा भक्ति से समस्त जगत को सराबोर करने हेतु दृढ़ संकल्पित है, जिसमें अनूपमेय सुख है । जिसकी प्राप्ति के बाद जीव के लिए कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता है ।
बी.जी.एस.एम. का सफ़र-वृतान्त स्क्रॉल कर पढ़े...१९८९ : बी.जी.एस.एम. का बीजारोपण -
१५ अक्टूबर, सन् १९८८ में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने पूज्या रासेश्वरी देवी जी को अपनी नव प्रचारिका घोषित कर इस विशाल भक्ति वृक्ष का बीजारोपण किया । गुरुवर के आदेश को शिरोधार्य कर ये निकल पड़ीं उस महाप्रसाद के वितरण हेतु, जिसे मुक्त हस्त से दान हेतु स्वयं जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज इस धराधाम पर अवतरित हुए थे । जन-जन में उस भक्तिभाव को भरने हेतु, एकमात्र जिससे ही जीव वास्तव में सुखी हो सकता है । समस्त जगत को क्रियात्मक रूप से यह अनुभव कराने हेतु, सब जीव वास्तव में आनन्दमय हो सकते हैं । सन् १९९९ तक इनका प्रवचन दुर्ग, नयागढ़, टाँगी, रणपुर, ईटामाँटी, खोर्द्धा, भुवनेश्वर (कई स्थानों पर), कटक, ढेंकानाल, बड़गढ़, आस्का, भंजनगर, वर्णपुर, अंगुल, बारीपदा, भद्रक, जबलपुर, केउञ्झर, राउरकेलाच (कई स्थानों में), शहीदनगर, संबलपुर आदि अनेक जगहों पर हो चुका था । सन् १९८९ से सन् १९९९ तक ये परिव्राजक का जीवन व्यतीत करती अनवरत यहाँ से वहाँ परिभ्रमण करती रहीं ।
१९९६ : यूनिट (इकाई) गठन का शुभारंभ
जनकल्याण के बृहत उद्देश्य को मूर्त्त रूप देने लिए जहाँ-जहाँ भी प्रवचन हुआ था, वहाँ पूज्या रासेश्वरी देवी जी द्वारा यूनिट का गठन किया जाता । यूनिट के गठन का उद्देश्य था— १. सत्संगियो को नियमित सत्संग का सुअवसर प्रदान करना २. सत्संगियों को ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ और ‘जगद्गुरु कृपालु परिषत्’ से नियमित जोड़े रखना ३. अपने मार्गदर्शन में लोक कल्याणकारी गतिविधियों के लिए प्रेरित करना ४. समस्त त्योहारों का माहात्म्य बताकर उसे मनाने के लिए प्रेरित करना। इस भाँति श्री महाराज जी की अपार कृपा से पूज्या रासेश्वरी देवी जी के मार्गदर्शन में ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ की स्थापना के पूर्व व पश्चात् प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में अविश्वसनीय लोककल्याणकारी कार्य संपादित होते रहे । विविध यूनिटों के गठन ने असंख्य लोगों को जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के सान्निध्य में परम दुर्लभ साधना का सुअवसर प्रदान किया । इन यूनिटों के सत्संगियों के सहयोग से विस्मयकारी जनसेवा की गई। इन्होंने प्रेम मंदिर, भक्ति मंदिर, भक्ति भवन जैसे परम दुर्लभ निधियों के निर्माण में अपना तन-मन-धन सब उत्स किया । सन् १९९६ से सन् २०१२ की अवधि में सर्वाधिक यूनिटों का गठन हुआ और ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ के इन यूनिटों के माध्यम से सर्वाधिक लोगों ने अपने आत्मकल्याण हेतु श्री कृपालु जी महाराज के प्रत्यक्ष सान्निध्य में दुर्लभ साधना की एवं उनके दिशानिर्देश में जनकल्याणकारी सेवाओं में भाग लिया। सन् १९९९ के बाद जो यूनिट अस्तित्व में आए, वे हैं- धनबाद (दो यूनिट), झरिया (दो यूनिट), अंगुल-२, वर्णपुर-२, भागलपुर, बिलासपुर, बी.जे, बी. नगर, बड़ा बाजार (कोलकाता), दुर्ग, जबलपुर-२, जोधपुर-२, उदयपुर-२, कोटा, मुजफ्फरपुर-२, नयापल्ली, पटना-४, रायगढ़, उज्जैन, राजनन्दगाँव, राँची-३, रानीगंज, राऊरकेला-३, सिलिगुड़ी-२, दार्जीलिंग, गुवाहाटी, श्रीगंगानगर, अमृतसर, आसनसोल-३, भावनगर, भवानीपुर, बिकानेर, दुर्गापुर-२, ग्वालियर, लुधियाना, बालाघाट, रतलाम, विदिशा, अकोला, अलवर, अंबिकापुर, अमरावती, आसनसोल, बलुरघाट, बाँकुड़ा, बरबिल, बेहला, ब्रह्मपुर-२, भीलबाड़ा, विष्णुपुर, बोलपुर, वर्धमान-२, चित्तौड़गढ़, डाल्टनगंज, दरभंगा, देवघर, धमतरी, गया, गिरिडीह, गोंदिया, हजारीबाग, जगदलपुर, कटक, जलपाईगुड़ी, जूनागढ़, जमशेदपुर-२, कटिहार, कल्याणी, कृष्णनगर-२, कोरबा, मालदा-२, मिदिनापुर-२, नागोर, पटना-४. पोरबन्दर, पूर्णियाँ, पुरुलिया, रानीगंज, रायपुर, सीकर, सोदपुर, श्रीरामपुर, शहडौल, तमलुक-२, यवतमाल, अमृतसर-२, पाली, दुर्गापुर-२, बरोदरा, कूचबिहार-२, गोवा और पांचिम, लंदन (यू.के.) । आगामी प्रवचन आयोजन के साथ-साथ अन्य नए यूनिटों का भी गठन भविष्य में होता चला जाएगा।
१९९९ : बी.जी.एस.एम. की स्थापना
सन् १९९९ तक अनेक लोग पूज्या रासेश्वरी देवी से जुड़ चुके थे । चूँकि उस समय मुख्यत: ओडिशा में ही प्रचार हो रहा था तो ये सत्संगीगण इनके सान्निध्य का लाभ इनके प्रवचन स्थलों पर हर जा कर ही उठा लेते थे । किन्तु ये नियमित रूप से इनके मागदर्शन में साधना करना चाहते थे । इस समय तक कुछ ऐसे समर्पित जिज्ञासु भी जुड़ चुके थे, जो इनके प्रचार-प्रसार को बृहत रूप देने का संकल्प ले चुके थे । वे इस बात के लिए आतुर थे कि श्री महाराज जी के विलक्षण सिद्धान्त और अनूपमेय साधना का जल्दी-से-जल्दी सबको लाभ मिले । इन्हें सोने, उठने, बैठने, खाने किसी का भी होश नहीं था । ये पूजनीया देवी जी के स्वरूप को जान चुके थे । वे जान चुके थे कि देवी जी के साथ कदम-से-कदम मिलाकर इन्हें भी श्री महाराज जी के अनूपमेय सिद्धान्त का प्रचार-प्रसार करना है । ये थे- श्री महाराज जी के वर्तमान प्रमुख प्रचारकों में से एक प्रचारक स्वामी श्री युगल चरण जी । इनके दृढ़ संकल्प ने अनेकों के हृदय की लालसा को संबल प्रदान किया और इनके प्रयास से ‘ब्रज गोपिका धाम’ का शिलान्यास एवं ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ का गठन सन् १९९९ में श्री महाराज जी की कृपा छत्रच्छाया तले पूज्या रासेश्वरी देवी जी के मार्गदर्शन में हुआ । ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ के गठन का उद्देश्य था— १. जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के निखिल समन्वयवादी ‘कृपालु भक्तियोग दर्शन’ के अनुसार भौतिकवाद और आध्यात्मवाद के बीच सुन्दर सामंजस्य स्थापित करते हुए प्रत्येक जीव को दिव्यानन्द की प्राप्ति हेतु तत्त्वज्ञान प्रदान करना । २. हिन्दू धर्म के वेद-शास्त्रों के मत-मतान्तरों की समस्त शंकाओं का निवारण करना । ३. वेद-शास्त्रों के वास्तविक रहस्य को उद्घाटित कर निष्काम भक्ति का जन-जन में प्रचार-प्रसार करना । ४. भक्ति की क्रियात्मक साधना कराना । ५. ‘भक्ति के अधिकारी सब हैं’— क्रियात्मक रूप से इसका मार्गदर्शन प्रदान कर अति सहज व सरल भक्ति मार्ग पर चलने में जीवों को सहयोग प्रदान करना । ६. दान स्वीकार और वितरण कर जरूरतमंदों को भौतिक सेवाएं भी प्रदान करना ।
२००४ : बी.जी.एस.एम. के अन्य विविध आश्रमों की स्थापना
इसी दौरान ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ के निम्नलिखित आश्रमों की भी स्थापना हुई-
‘ब्रज गोपिका धाम’ के बाद सबसे पहले सन् २००४ में जगन्नाथपुरी, ओडिशा में ‘जगद्गुरु धाम’ की नींव पड़ी । इसका उद्देश्य था- सर्वधर्म-मत समन्वय स्वरूप भारत-भूमि, सर्वधर्म-मत समन्वय धाम श्री जगन्नाथपुरी, सर्वधर्म-मत समन्वय इष्ट श्री जगन्नाथ जी (श्रीकृष्ण) और सर्वधर्म-मत समन्वयाचार्य ‘निखिलदशर्नसमन्वयाचार्य जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के समन्वयात्मक स्वरूप को विश्व के समक्ष उद्घाटित करना । इसे सम्यक् रूप को मूर्त रूप प्रदान करना । यह निकट भविष्य में भारतवर्ष, श्री जगन्नाथ पुरी, श्रीजगन्नाथ जी और श्री कृपालु महाप्रभु के दिव्य व्यक्तित्व और उनके कृतित्व का हत्प्रभ कर देने वाला ‘वसुदैव कुटुम्बकम्’ स्वरूप विश्व के समक्ष प्रस्तुत करेगा । विश्व के समस्त जीवों में ‘एक ईश्वर’ की निष्ठा भरेगा । श्री जगन्नाथ मंदिर से लगभग २ कि.मी. की दूरी पर स्थित प्राकृतिक छटा से भरपूर अति रमणीय यह पवित्र स्थल ‘कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन’ के प्रचार-प्रसार के महत्त्वपूर्ण केन्द्रों में से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एक केन्द्र होगा । यह श्री कृपालु जी महाराज के ‘रूपध्यान’ पर आधारित उनकी अनूठी क्रियात्मक साधना का लाभ जन-जन तक पहुँचाने हेतु दृढ़ संकल्पित है ।
सन् २००९ में नवद्वीप (प. बंगाल) में ‘भक्ति धाम’ का शिलान्यास हुआ । अति ही पवित्र स्थली नवद्वीप में गंगा के तट पर ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ का यह आश्रम स्थित है । इस आश्रम का हम सबके लिए बहुत महत्व है क्योंकि यह हमें सदा याद दिलाता रहेगा कि श्री कृपालु महाप्रभु ने नवद्वीप धाम को उसी स्वरूप में दर्शन दिए, जिसके दर्शन नदियावासियों को ५०० वर्ष पूर्व श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु के रूप में हुआ थे । यह भक्ति के वास्तविक स्वरूप को अक्षुण्ण रखने के प्रति कृत संकल्पित
है ।
आश्रमों की स्थापना की कड़ी में चौथा दार्जीलिंग (पं. बंगाल) में ‘कृपालु कुंज’ के रूप में अस्तित्व में
आया । समुद्र तल से ८००० मीटर ऊपर अनूपमेय नैसर्गिक छटा लिए यह स्थान साधकों की अति प्रिय साधनास्थली है । यहाँ कंचनगंगा का प्राकृतिक सौंदर्य साधकों के हृदय में प्रभु मिलन की परम उत्कंठा जगाता रहेगा और यह संदेश सबको देता रहेगा— ‘हे मुझ पर रीझने वाले जीवों ! क्या तुम मेरे रचनाकार से नहीं मिलना चाहोगे ? सच कहता हूँ, उसके सौन्दर्य की तुम एक झलक पा लो, तो फिर कभी तुम मुझे सुन्दर न कहोगे ।’
सर्वकल्यकारी यात्रा : हृदयस्पर्शी चरण
सन् २०१३ में जगद्गुरु श्री महाराज जी के गोलोक गमन की हृदयघाती घटना ने ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ परिवार के प्रत्येक सदस्य के जीवन को विस्मयकारी मोड़ पर लाकर स्तब्ध-सा खड़ा कर दिया । सभी गतिविधियों पर विराम लग गया । सब स्तंभित किंकर्त्तव्यविमूढ़ से निराधार महसूस करने लगे । कुछ दिनों के लिए सभी आत्ममंथन में डूब गए । सब में साधना की गहराइयों में उतरने की प्रबल व्याकुलता जाग गई । सभी अपने उद्धारक के प्रत्यक्ष दर्शन चाहते थे । उनकी विकलता- व्याकुलता ने ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ की जिम्मेदारी बढ़ा दी । सभी सत्संगियों को सँभालने का बड़ा दायित्व इसके समक्ष उपस्थित हो गया । श्री गुरुवर समझा गए थे कि एक पल भी बरबाद मत करो । एक भी साँस हरि-गुरु के चिंतन के बिना न हो । अत: ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ ने इस अवधि को साधना की अवधि में परिवर्तित कर दिया । विशुद्ध साधना ! अनेकानेक साधना शिविरों का आयोजन हुआ । पूज्या देवी जी लगातार यूनिट के दौरे पर रहीं और सबको अपना सत्संग प्रदान करती रहीं । इस दौरान सत्संगियों के बच्चों का श्री महाराज जी के प्रति असीम प्यार का रहस्य खुला । अब ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ ने इनके भी उत्थान के लिए ठोस योजनाएं बनाईं । इन बच्चों के लिए इनकी छुट्टियों में अधिक-से-अधिक शिविर रखे जाने लगे । ‘युवा साधना शिविर’ और ‘बाल विकास साधना शिविर’ का आयोजन इसके अन्तर्गत होने लगा ।
जनकल्याण : जारी यात्रा
२०१४ के बाद ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ ने पुन: जनता के बीच प्रवचन का कार्य प्रारम्भ किया । इस दौरान अनेक जगहों में जोरों से प्रवचन का कार्य अनवरत रूप से बिना रुके किया गया, जैसे—बांसवाड़ा, दुर्गापुर, पाली, खण्डगिरि, अमृतसर, जमशेदपुर, गोवा, पांजिम आदि । अब ‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ ने प्रचार-प्रसार के नव संसाधनों को अपनाना शुरु किया और अपने आध्यात्मिक परिवार के उन्नयन पर विशेष ध्यान दिया ताकि निकट भविष्य श्री महाराज के महादान का वितरण द्रुत से हो सके। इसके तहत वार्षिक साधना शिविर, जगद्गुरु साधना शिविर, मौन साधना शिविर, क्षेत्रीय साधना शिविर, युवा साधना शिविर, बाल-विकास शिविर, भक्तियोग साधना शिविर आदि की शुरुआत की गई । नए केन्द्रों की भी स्थापना की गई ताकि अधिक-से अधिक संख्या में लोगों को जोड़कर उन्हें सुगमता से लाभ पहुँचाया जा सके और सत्संगियों को उच्च स्तर की वैसी ही साधना का सुअवसर मिले जैसी साधना श्री महाराज जी ५० से ६० के दशक में करवाते थे ।
‘ब्रज गोपिका सेवा मिशन’ उन उन्नत आधुनिकतम प्रचार-प्रसार के तरीकों को अपनाने हेतु संकल्पित है, जो श्री महाराज जी सिद्धांत के प्रचार-प्रसार के साथ उनकी ‘रूपध्यान’ की उस अनूठी साधना को जन-जन तक पहुँचाएगा, जिसका लाभ श्री महराज जी की कृपा से कुछ विरले भाग्यशाली जीवों को उनके शुरुआती दौर में मिला था ।
श्री महाराज जी के सिद्धांत के प्रचार-प्रसार के लिए आध्यात्मिक परिवार के उन्नयन पर संपूर्ण ध्यान केन्द्रित






















यात्रा का हर कदम : अंत नहीं आरंभ
आपने बड़ी एकाग्रता से हमारे अब तक के यात्रा-वृतांत को पढ़ा, हमें पूरा विश्वास है कि यह आपको उतना ही अच्छा लगा होगा, जितना हमें इस यात्रा से गुजरते हुए आनंद आया। कृपया इस पृष्ठ को देखते रहें। हमारी यात्रा के बढ़ते कदम के साथ इसकी यात्रा-वृतांत-कड़ी में भी आपके लिए नव-नव सुन्दर प्रसंग जुड़ते चले जाएंगे । याद रहे ! ‘जगद्गुरु धाम ’ का परम रोमांचक यात्रा-वृतांत अब तक इसमें जुड़ना शेष है।